किसको हजम नहीं हो रहा अशोक का बढ़ता सियासी कद?विश्वकर्मा माइनिंग में इनकम टैक्स छापे की इनसाइड स्टोरी..

कटनी, माइनिंग व्यवसायी और जिला पंचायत के उपाध्यक्ष अशोक विश्वकर्मा के निवास और दफ्तर में चौथे दिन भी जारी आयकर छापे की कार्यवाही में क्या निकलेगा, यह तो विभाग के अफसर ही बता सकेंगे लेकिन इस कार्यवाही से जुड़ा एक सवाल सियासी गलियारों में तैर रहा है। सवाल यही है कि आखिर अशोक विश्वकर्मा का बढ़ता राजनीतिक कद किसको हजम नहीं हो रहा ? कौन ऐसा है जिसे भविष्य में अपनी सियासत पर खतरा दिख रहा है। सवाल यह भी कि अशोक आखिर किसकी सियासी जमीन पर तेजी के साथ सेंध लगा रहे हैं। छापे की कार्यवाही के साथ ये चर्चाएं राजनीतिक हलकों में सुनी जा रही हैं। हैरत इस बात पर है कि अशोक विश्वकर्मा भाजपा के समर्थन से ही जिला पंचायत के उपाध्यक्ष की कुर्सी पर दोबारा काबिज हुए और वर्तमान में पार्टी में पिछड़ा वर्ग मोर्चा के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं, लेकिन उनकी ही सरकार में उन्हें निशाने पर ले लिया गया।
छापों में कम ही ऐसा हुआ होगा, जब सत्तापक्ष से जुड़े लोग अपनी ही सरकार में जांच की कठिन प्रक्रियाओं से गुजरे हों। जिला पंचायत उपाध्यक्ष अशोक विश्वकर्मा और उनके परिवार की कंपनियों पर छापे की टाइमिंग भी कुछ अलग कहानी कहती है। दो दिन पहले ही अशोक विश्वकर्मा की माताजी की तेरहवीं थी। मां के निधन के बाद तेरह दिन से विश्वकर्मा माइनिंग में कारोबारी शिथिलता थी, केवल रोजमर्रा के जरूरी कार्यालयीन काम ही हो रहे थे। ऐसे में 17 दिसंबर की अलसुबह पहुंचे इनकम टैक्स के अफसरों ने जिस अंदाज में छापेमारी की, वह किसी बड़ी योजना का संकेत दे रहा है। परिवार के लोगों को नींद से जगाकर दरवाजे खुलवाए गए और सारे मोबाइल बंद कराते हुए खुद
अशोक और परिवार के लोगों का बाहरी संपर्क खत्म करा दिया गया। आमतौर पर ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स छापों की सूरत ऐसी ही होती है, लेकिन विश्वकर्मा माइनिंग को लेकर अफसरों के पास जो फीडबैक था, उसके मुताबिक यहां अतिरिक्त सख्ती भी बरती जा रही है। किसी को भी घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं है। इनकम टैक्स के अफसर ही जांच के लिए जरूरत पड़ने पर घर के सदस्यों को अपने साथ लेकर जा रहे हैं। इस पड़ताल में क्या गड़बड़ी पाई गई, इसका खुलासा विभाग के अफसर भोपाल या जबलपुर जाकर करेंगे, लेकिन सूत्र यहीं बता रहे हैं कि विश्वकर्मा माइनिंग में टैक्स चोरी को लेकर विभाग के पास जो फीडबैक था, वैसा बहुत ज्यादा कुछ नहीं निकल रहा, हालांकि इनकम टैक्स की टीम ने बहुत सारे दस्तावेज अपने बस्ते में बंद कर लिए हैं।
कुछ समय पहले होटल में हुई थी आगजनी
यहां उल्लेखनीय है कि अशोक विश्वकर्मा ने पिछले चुनाव में पर्चा दाखिल कर राजनीतिक सनसनी मचा थी, तब पार्टी के ऊपर बैठे रणनीतिकारों को सक्रिय होना पड़ा था और अशोक को व्यापारिक नुकसान का भय दिखाकर दबाव में लाया गया। इसके बाद उन्होंने नाम वापस ले लिया था। इस बार दो विधानसभा क्षेत्रों में उन्हें बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। इन परिस्थितियों में सवाल यह उठता है कि क्या उन्हें कमजोर करने के लिए कोशिशें शुरू हो चुकी है। कहीं छापे की कार्यवाही गोपनीय तौर पर किन्हीं व्यक्ति यों से मिले इनपुट का नतीजा तो नहीं। लोगों को याद ही होगा साल भर पहले बरगवां में अशोक विश्वकर्मा की होटल में आगजनी की बड़ी घटना हुई थी, जिसमें उन्हें करोड़ों की क्षति पहुंची थी। आखिरी सवाल यही है, आखिर कौन है, वो लोग, जिनकी आंखों की किरकिरी अशोक विश्वकर्मा बने हुए है?
चर्चाओं का बाजार गर्म
एक राजनेता के यहां छापे की इस कार्यवाही के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म होना स्वाभाविक है। भाजपाई गलियारों से ज्यादा खबरें छन-छनकर बाहर आ रही हैं। खबर तो यही है कि अशोक विश्वकर्मा का लगातार बढ़ता राजनीतिक कद उनकी हालिया परेशानी की वजह बन गया। सरल स्वभाव के साथ बढ़ती लोकप्रियता ने भाजपा के अंदर ही कुछ नेताओं को चिन्तित कर दिया है। वे दो बार से जिला पंचायत के निर्वाचित उपाध्यक्ष है। इस बार तो वे दर्जनों उम्मीदवारों को पराजित कर बिल्कुल नए क्षेत्र से चुनाव जीते। एक मजबूत पक्ष उनका पिछड़े वर्ग से होना भी है। भाजपा के पास जिले में इस वर्ग से सीमित विकल्प ही हैं। नेता इस बात को भली भांति जानते हैं कि पार्टी कभी भी उन्हें किसी बड़ी जिम्मेदारी के लिए आजमा सकती है, इसलिए नेता उनकी पदचाप से सहमे हुए हैं।
संवाददाता हेमन्त सिंह
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