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पैसों के दम पर चलता जिला स्वास्थ्य विभाग, डर और दलालों से मरीजों की खुली लूट,कुछ लालची डाक्टरों की बजह से भगवान का दर्जा प्राप्त करने वाले भी दागदार हो रहे

पैसों के दम पर चलता जिला स्वास्थ्य विभाग, डर और दलालों से मरीजों की खुली लूट,कुछ लालची डाक्टरों की बजह से भगवान का दर्जा प्राप्त करने वाले भी दागदार हो रहे

कटनी जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था आज इलाज नहीं बल्कि उगाही का संगठित तंत्र बन चुकी है। मध्यप्रदेश में यदि भ्रष्टाचार की बात होती है तो कटनी का स्वास्थ्य विभाग शर्मनाक उदाहरण बनकर सामने आता है। जिले में संचालित दो दर्जन से अधिक निजी अस्पताल प्रशासन की नाक के नीचे खुलेआम गरीब मरीजों की जेब काटने का धंधा चला रहे हैं। प्रशासनिक संरक्षण में निजी अस्पताल संचालक और स्वास्थ्य अधिकारियों की गहरी मिलीभगत ने इलाज को व्यापार बना दिया है। दलालों के जरिए मरीजों को डराया जाता है छोटी बीमारी को जानलेवा बताकर भय का वातावरण बनाया जाता है और फिर शुरू होती है आर्थिक लूट।

*अस्पताल के भीतर मेडिकल बाहर कानून की कब्र*

लगभग हर निजी अस्पताल परिसर के अंदर ही मेडिकल स्टोर संचालित हो रहे हैं। दवाएं वही हैं जो बाजार में उपलब्ध हैं लेकिन दवा का नाम बदलकर चार गुना कीमत छाप दी जाती है। ऐसा इसलिए ताकि वह दवा किसी अन्य मेडिकल स्टोर पर न मिले और मजबूर मरीज उसी अस्पताल से लूटे जाने को विवश हो जाए। सवाल यह है कि

जो दवाएं केवल एक ही अस्पताल में मिलती हैं क्या वे मध्यप्रदेश के ड्रग कंट्रोल कानून से ऊपर हैं?या फिर प्रशासन ने आंखों पर भ्रष्टाचार की पट्टी बांध रखी है।

*ईश्वर का दर्जा पाने वाले डॉक्टर बने लुटेरे*

जिस समाज ने डॉक्टरों को ईश्वर का दर्जा दिया आज वही डॉक्टर मुनाफाखोर बनकर मरीजों का खून चूस रहे हैं। दवाओं जांचों और बेवजह भर्ती के नाम पर अस्पताल से ज्यादा मेडिकल बिलों से ठगा जा रहा है मरीज। स्वास्थ्य विभाग ने आज तक न दवाओं की जांच की न अस्पतालों की कार्यप्रणाली की।

*आयुष्मान योजना बना कालाबाजारी का हथियार*

भारत सरकार की आयुष्मान योजना जो गरीबों के इलाज के लिए लाई गई थी कटनी में लूट की सबसे बड़ी योजना बन चुकी है। चिन्हित अस्पताल मरीजों से नगद भी वसूलते हैं और आयुष्मान कार्ड से पूरी राशि भी हजम कर जाते हैं।छोटी बीमारी को बड़ा बताकर योजना की पूरी राशि निकाल ली जाती है। अशिक्षित गरीब मरीज को यह तक पता नहीं होता कि उससे किस बात की सहमति ली जा रही है। उसकी मजबूरी और अज्ञानता को हथियार बनाकर योजनाओं की खुलेआम कालाबाजारी की जा रही है।

*प्रशासन की मौन सहमति या साझेदारी*

आज तक एक से एक गंभीर मामले सामने आए लेकिन किसी भी अस्पताल संचालक पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई। कारण साफ है

जिला स्तर से लेकर विभागीय कर्मचारियों तक डॉक्टरों को लाभ पहुंचाने के बदले अपने और अपने परिवार का मुफ्त इलाज करा ते है। आम आदमी मरे या जिए इससे न स्वास्थ्य विभाग को फर्क पड़ता है न ही प्रशासनिक अफसरों को।

*जनता का सवाल*

कब तक टूटेगा यह स्वास्थ्य विभाग इंशानीयत को जीवित खा रहे अस्पताल संचालक, जब अस्पताल संचालक कुछ ही वर्षों में करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर लेते हैं तो यह स्पष्ट हो जाता है कि यह सिर्फ इलाज नहीं सरकारी संरक्षण में चल रहा संगठित अपराध है।अब सवाल यह नहीं कि भ्रष्टाचार है या नहीं,

सवाल यह है कि कब होगी कार्रवाई कब मिलेगा गरीब मरीज को न्यायऔर कब टूटेगा कटनी का यह स्वास्थ्य माफिया

क्या जिला कलेक्टर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगें या गरीबों मरिजो के लिए भी उनकी कलम आराम फरमाएगी।

संवाददाता हेमन्त सिंह

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